Green Industrial Corridor: देश में पहली बार ऐसा होने जा रहा है कि किसी इंडस्ट्रियल कॉरिडोर को पूरी तरह “ग्रीन” थीम पर बनाया जाएगा. राजस्थान और गुजरात की सीमा पर बनने वाला यह ग्रीन इंडस्ट्रियल कॉरिडोर 21वीं सदी के उद्योगों का नया चेहरा होगा. सरकार ने इस मेगा प्रोजेक्ट पर ₹35,000 करोड़ का निवेश मंज़ूर किया है, जो आने वाले समय में भारत के मैन्युफैक्चरिंग और एक्सपोर्ट हब को नई दिशा देगा.

Green Industrial Corridor की खासियत
यह कॉरिडोर पूरी तरह नवीकरणीय ऊर्जा और पर्यावरण-हितैषी तकनीकों पर आधारित होगा. यहां लगने वाले सभी औद्योगिक पार्क, फैक्ट्रियां और लॉजिस्टिक्स हब सोलर और विंड पावर से चलेंगे. इस कॉरिडोर में इलेक्ट्रिक मोबिलिटी, वेस्ट-टू-एनर्जी सिस्टम और ग्रीन बिल्डिंग्स जैसी सुविधाएं होंगी, जिससे कार्बन उत्सर्जन लगभग शून्य रहेगा.
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रोजगार और निवेश का नया हब
सरकार का दावा है कि इस ग्रीन इंडस्ट्रियल कॉरिडोर के बन जाने के बाद लाखों लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार मिलेगा. खासकर राजस्थान और गुजरात के बॉर्डर पर बसे छोटे कस्बों और गांवों के युवाओं को मैन्युफैक्चरिंग, ट्रांसपोर्ट और सप्लाई चेन से जुड़ी नौकरियों में बड़ा मौका मिलेगा. साथ ही MSME सेक्टर और स्टार्टअप्स के लिए भी यहां नए अवसर खुलेंगे.
तेज़ कनेक्टिविटी और इंफ्रास्ट्रक्चर
इस कॉरिडोर को नेशनल हाइवे, डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर और पोर्ट्स से जोड़ा जाएगा, ताकि सामान की सप्लाई तेज़ और किफायती रहे. ग्रीन लॉजिस्टिक्स हब, स्मार्ट वेयरहाउस और इलेक्ट्रिक ट्रक चार्जिंग स्टेशन जैसी सुविधाएं भी यहां विकसित की जाएंगी. इससे देश और विदेश के निवेशक यहां आने के लिए आकर्षित होंगे.
कीमत और टाइमलाइन
₹35,000 करोड़ के इस मेगा प्रोजेक्ट का पहला फेज़ 2028 तक पूरा होने की योजना है. इसमें सरकार के साथ कई निजी कंपनियां भी निवेश करेंगी. विशेषज्ञों के मुताबिक, यह कॉरिडोर आने वाले वर्षों में भारत के GDP में बड़ा योगदान देगा और राजस्थान-गुजरात बेल्ट को देश का सबसे बड़ा ग्रीन इंडस्ट्रियल हब बना देगा.